चंद्रयान-3, भारत का चंद्रमा लैंडर और रोवर

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चंद्रयान-3 का लॉन्च शुक्रवार को सफ़लतापूर्वक पूरा हो गया है. Chandrayaan-3 Project Details: चंद्रयान-3 के साथ भारत ने एक बार फिर चांद की सतह पर पहुंचने की कोशिश शुरू की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (ISRO) के वैज्ञानिक 14 जुलाई 2023 की दोपहर खुशी से झूम उठे। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया। ISRO का पिछला मून मिशन 'चंद्रयान-2' आखिरी दौर में फेल हो गया था। चंद्रयान-3 को पिछली गलतियों से सबक लेकर डिजाइन किया गया है। चांद पर सफल लैंडिंग के साथ ही भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए हैं। ISRO ने चंद्रयान-3 को कई तरह के टेस्‍ट से गुजारा है ताकि चंद्रयान-2 जैसी चूक न होने पाए। चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट से जुड़ी हर बात 5 पॉइंट्स में समझ‍िए। चंद्रयान-3 तीन में एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रॉपल्सन मॉड्यूल लगा हुआ है. इसका कुल भार 3,900 किलोग्राम है. चंद्रयान के रोवर और लैंडर के नाम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम 'विक्रम' और रोवर का नाम 'प्...

राजस्थान का इतिहास

 1. प्राचीन सभ्यता -

   (1)

1. कालीबंगा सभ्यता

1. जिला - हनुमानगढ़

2. नदी - सरस्वती(वर्तमान की घग्घर)

3. समय - 3000 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक

4. काल - कास्य युगीन काल

5. खोजकर्ता - 1952 अमलानन्द घोस

6. उत्खनन कर्ता - (1961-69) बी. बी. लाल, वी. के. थापर

7. बी. बी. लाल - बृजबासी लाल

8. बी. के. थापर - बालकृष्ण थापर

9. शाब्दीक अर्थ - काली चुडि़यां

विशेषताएं

1. दोहरे जुते हुऐ खेत के साक्ष्य

2. यह नगर दो भागों में विभाजित है और दोनों भाग सुरक्षा दिवार(परकोटा) से घिरे हुए हैं।

3. अलंकृत ईटों, अलंकृत फर्श के साक्ष्य प्राप्त हुए है।

4. लकड़ी से बनी नाली के साक्ष्य प्राप्त हुए है।

5. यहां से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है। यहां से ऊंट की हड्डियां प्राप्त हुई है, ऊंट इनका पालतु पशु है।

6. यहां से सुती वस्त्र में लिपटा हुआ ‘उस्तरा‘ प्राप्त हुआ है।

7. यहां से कपास की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है।

8. जले हुए चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

9. युगल समाधी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

10. यहां से मिट्टी से निर्मिट स्केल(फुटा) प्राप्त हुआ है।

11. यहां से शल्य चिकित्सा के साक्ष्य प्राप्त हुआ है। एक बच्चे का कंकाल मिला है।

2. आहड़ सभ्यता

1. जिला - उदयपुर

2. नदी - आयड़(बेड़च नदी के तट पर)

3. समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व

4. काल - ताम्र पाषाण काल

5. खोजकत्र्ता - 1953 अक्षय कीर्ति व्यास

6. उत्खनन कत्र्ता - 1956 आर. सी. अग्रवाल(रत्नचन्द्र अग्रवाल)

7. सबसे अधिक उत्खनन करवाया 1961 में एच. डी.(हंसमुख धीरजलाल) सांकलिया ने।

8. आहड़ का प्राचीन नाम - ताम्रवती

9. 10 या 11 शताब्दी में इसे आघाटपुर/आघाट दुर्ग कहते थे।

10. स्थानीय नाम - धुलकोर

विशेषता

1. भवन निर्माण में पत्थर का प्रयोग

2. उत्खनन में अनाज पिसने की चक्की मिली है।

3. कपड़ों में छपाई किये जाने वाले छापे के साक्ष्य मिले हैं।

4. छः तांबे के सिक्के मिले हैं।

5. यहां से एक भवन में छः मिट्टी के चुल्हे मिले हैं।

6. मिट्टी के बर्तन व तांबे के आभुषण मिले है।

 

3. बालाथल सभ्यता

1. जिला - उदयपुर(बल्लभनगर तहसील के पास)

2. नदी - बनास

3. समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व तक

4. आहड़ सभ्यता से सम्बधित ताम्रपाषाण युगीन स्थल

5. खोजकत्र्ता व उत्खनन कत्र्ता - 1993 वी. एन. मिश्र(विरेन्द्र नाथ मिश्र)

विशेषता

1. भवन निर्माण में पत्थर के साथ ईंटो का प्रयोग किया गया है।

2. मिश्रित अर्थव्यवस्था के साक्ष्य मिले हैं।

3. कृषि के साथ - साथ पशुपालन का प्रचलन था।

 

4. गिलुण्ड/ गिलुन्द सभ्यता

1. जिला - राजसमंद

2. आहड़ सभ्यता से सम्बधित ताम्रपाषाण युगीन स्थल

3. खोजकत्र्ता/ उत्खनन कर्ता - 1957- 58 वी. बी.(वृजबासी) लाल

 

5. धौलीमगरा

1. जिला - उदयपुर

2. आयड़ सभ्यता का नवीनतम स्थल

 

6. गणेश्वर सभ्यता

1. जिला - सीकर, नीम का थाना - सहसील

2. नदी - कांतली

3. समय - 2800 ईसा पुर्व

4. काल - ताम्रपाषाण काल (ताम्रपाषाण युगीन सभ्यता की जननी)

5. खोजकत्र्ता/उत्खनन कत्र्ता - 1977 आर. सी.(रत्न चन्द्र) अग्रवाल

विशेषताएं

1. मछली पकड़ने का कांटा मिला है।

2. ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है।

3. शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं।

 

7. बैराठ सभ्यता

1. जिला - जयपुर

2. नदी - बाणगंगा

3. समय - 600 ईसा पुर्व से 1 ईस्वी

4. काल - लौह युगीन

5. खोजकत्र्ता/ उत्खनन कर्ता - 1935 - 36 दयाराम साहनी

6. प्रमुख स्थल - बीजक की पहाड़ी, भीम की डुंगरी, महादेव जी डुंगरी

विशेषता

1. महाजन पद संस्कृति के साक्ष्य(600 ईसा पुर्व से 322 ईसा पुर्व तक)

*मत्स्य जनपद की राजधानी - विराटनगर

*(मत्स्य जनपद - जयपुर, अलवर, भरतपुर)

*विराटनगर - बैराठ का प्राचीन नाम है।

2. महाभारत संस्कृति के साक्ष्य

*पाण्डुओं ने अपने 1 वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर के राजा विराट के यहां व्यतित किया था।

3. बौद्धधर्म के साक्ष्य मिले हैं।

*बैराठ से हमें एक गोलाकार बौद्ध मठ मिला है।

4. मौर्य संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।

*मौर्य समाज - 322 ईसा पुर्व से 184 ईसा पुर्व

*सम्राट अशोक का भाब्रु शिलालेख बैराठ से मिला है।

*भाब्रु शिलालेख की खोज - 1837 कैप्टन बर्ट

*इसकी भाषा - प्राकृत भाषा

*​लिपी - ब्राह्मणी

*वर्तमान में भाब्रु शिलालेख कोलकत्ता के संग्रहालय में सुरक्षित है।

5. हिन्द - युनानी संस्कृति के साक्ष्य मिले है।

*यहां से 36 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं 36 में से 28 सिक्के हिन्द - युनानी राजाओं के है। 28 में से 16 सिक्के मिनेण्डर राजा(प्रसिद्ध हिन्द - युनानी राजा) के मिले हैं।

*शेष 8 सिक्के प्राचीन भारत के सिक्के आहत(पंचमार्क) है।

8. अन्य सभ्यता

1. सुनारी - झुन्झुनू

तांबा गलाने की भट्टीयां मिली है।

2. रेड - टोंक

लौहे के भण्डार प्राप्त हुए हैं।

इस कारण इसे ‘प्राचीन भारत का टाटानगर‘ कहा जाता है।

3. नालियासर - जयपुर

लोहा युगीन सभ्यता

4. रंगमहल, पीलीबंगा - हनुमानगढ़

कांस्ययुगीन सभ्यता(सिन्धु घाटी सभ्यता के स्थल)

5. नगरी - चित्तौड़गढ़

नगरी का प्राचीन नाम - मध्यमिका

6. नगर - टोंक

प्राचीन नाम - मालव नगर

 2.राजस्थान इतिहास जानने का स्रोत_

1. परिचय

1. राजस्थान इतिहास को जानने के स्त्रोतः- इतिहास का शाब्दिक अर्थ- ऐसा निश्चित रूप से हुआ है। इतिहास के जनक यूनान के हेरोडोटस को माना जाता हैं लगभग 2500 वर्ष पूर्व उन्होने " हिस्टोरिका" नामक ग्रन्थ की रचना की । इस ग्रन्थ में उन्होने भारत का उल्लेख भी किया हैं।

2. भारतीय इतिहास के जनक महाभारत के लेखक वेद व्यास माने जाते है। महाभारत का प्राचीन नाम "जय सहिता" था।

3. राजस्थान इतिहास के जनक कर्नल जेम्सहाडॅ कहे जाते है। वे 1818 से 1821 के मध्य मेवाड़ (उदयपुर) प्राप्त के पोलिटिकल एजेन्ट थे उन्होने घोडे पर धूम-धूम कर राजस्थान के इतिहास को लिखा।

4. अतः कर्नल टाॅड को "घोडे वाले बाबा" कहा जाता है। इन्होने "एनाल्स एण्ड एंटीक्वीटीज आॅफ राजस्थान" नामक पुस्तकालय का लन्दन में 1829 में प्रकाशन करवाया।

5. गोराी शंकर हिराचन्द ओझा (जी.एच. ओझा) ने इसका सर्वप्रथम हिन्दी में अनुवाद करवाया। इस पुस्तक का दूसरा नाम "सैटर्ल एण्ड वेस्टर्न राजपूत स्टेट आॅफ इंडिया" है।

6. कर्नल जेम्स टाॅड की एक अनय पुस्तक "टेªवल इन वेस्र्टन इण्डिया" का इसकी मृत्यु के पश्चात 1837 में इनकी पत्नी ने प्रकाशन करवाया।

 

 

2. सिक्के

1. सिक्को के अध्ययन न्यूमिसमेटिक्स कहा जाता है। भारतीय इतिहास सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में सिक्को का व्यापार वस्तुविनियम पर आधारित था। भारत में सर्वप्रथम सिक्को का प्रचलन 2500 वर्ष पूर्व हुआ ये मुद्राऐं खुदाई के दोरान खण्डित अवस्था में प्राप्त हुई है। अतः इन्हें आहत मुद्राएं कहा जाता है। इन पर विशेष चिन्ह बने हुए है। अतः इन्हें पंचमार्क सिक्के भी कहते है। ये मुद्राऐं वर्गाकार, आयाताकार व वृत्ताकार रूप में है। कोटिल्य के अर्थशास्त्र में इन्हें पण/कार्षापण की संज्ञा दी गई ये अधिकांशतः चांदी धातु के थे।

2. राजस्थान के चैहान वंश ने राज्य में सर्वप्रथम अपनी मुद्राऐं जारी की। उनमें "द्रम्म" और "विशोपक" तांबे के "रूपक" चांदी के "दिनार" सोने का सिक्का था।

3. मध्य युग में अकबर ने राजस्थान में "सिक्का ए एलची" जारी किया। अकबर के आमेर से अच्छे संबंध थें अतः वहां सर्व प्रथम टकसाल खोलने की अनुमती प्रदान की गई।

राजस्थान की रियासतों ने निम्नलिखित सिक्के जारी किये

1. रियासत -- वंश -- सिक्के

2. आमेर -- कछवाह -- झाडशाही

3. मेवाड -- सिसोदिया -- चांदौडी (स्वर्ण)

4. मारवाड -- राठौड़ -- विजयशाही

5. मारवाड (गजसिंह) राठौड -- राठौड़ -- गदिया/फदिया

6. अंग्रेजों के समय जारी मुद्राओं में कलदार (चांदी) सर्वाधिक प्रसिद्ध है।

3. शिलालेख

शिलालेखों का अध्ययन एपीग्राफी कहलाता है। भारत में सर्वप्रथम अशोक मौर्य ने शिलालेख जारी करवाये।

1. अशोक का भब्रुलेख - जयपुर के निकट बैराठ से प्राप्त इस लेख में अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने की पुष्टी होती है। वर्तमान में यह लेख कोलकत्ता म्युजियम में है। अशोक का यह लेख पाली भाषा व ब्राहणी लीपी में है। कनिघम इस शिलालेख को अध्ययन के लिए कोलकत्ता ले गये थे।

2. घोसुण्डी का लेख - चित्तौडगढ़ जिले से प्राप्त प्रथम सदी का यह लेख संस्कृत में है। इसमे भगवान विष्णु की उपासना की जानकारी प्राप्त होती है।

3. चित्तौड़ का शिलालेख - 971 ई. का चित्तौड़ से प्राप्त इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि उस समय मेवाड़ क्षेत्र में महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित था।

4. बिजोलिया का शिलालेख - रचयिता -गुणभद,्र भाषा-संस्कृत 1170 ई. का यह शिलालेख भीलवाडा से जिला के पठारी भाग से प्राप्त इस लेख से शाकम्भरी के चैहान वंश के बारे मे प्राप्त होता है। इस लेख के अनुसार चैहानों की उत्पत्ति वत्स गोत्रिय बा्रहमणों से बताई गयी है।

5. चीरवे का शिलालेख - भाषा संस्कुत 1273 ई. (13 वीं सदी) मेवाड़ (उदयपुर) से प्राप्त इस शिलालेख से गुहिल वंश की जानकारी प्राप्त होती है।

6. श्रृंगीऋषी का शिलालेख - 1428 ई. मेवाड़ (15 वी. सदी) क्षेत्र से प्राप्त इस लेख से गुहिल वंश की जानकारी के साथ-साथ राजस्थान की प्राचीन जनजाती भील जनजाती के सामाजिक जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है।

7. आमेर का शिलालेख - (1612 ई.) मानसिंह प्रथम के इस लेख से निम्न लिखित जानकारी प्राप्त होती है।

कुशवाह वंश की जानकारी

1. मानसिंह द्वारा आमेर क्षेत्र जमवारामगढ़ दुर्ग बनवाये जाने का उल्लेख

2. इस लेख में कुशवाहा वंश को रघुवंश तिलक कहा गया है।

3. कुशवाह वंश की उत्पत्ति श्रीराम के बडे़ पुत्र कुश से मानी जाती है।

4. राजप्रशस्ति - 1676 ई. मेवाड़ के राणा राजसिंह ने राजसमंद झील बनवाई। जिसका उत्तरी भाग नौचैकी कहलाता है। यही पर पच्चीस काले संगमरमर की शिलाओं पर मेवाड का सम्पूर्ण इतिहास उत्कीर्ण है। जिसे राजप्रशस्ति कहा जाता है। यह संसार की सबसे बडी प्रशस्ति/लेख है। इसके सूत्रधार रणछोड़ भट्ट तैलंग है। जिन्हे अमरकाव्य वंशावली की रचना की।

 

4. फारसी क शिलालेख

1. ढाई दिन का झोपडा का लेख - अजमेर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने ढाई दिन का झोपडा बनवाया । इस पर फारसी भाषा में इसके निर्माताओं के नाम लिखे है। यह भारत का सर्वाधिक प्राचीन फारसी लेख है।

2. धाई-बी-पीर की दरगााह का लेख- 1303 ई. चित्तौड़ से प्राप्त फारसी लेख से ज्ञात होता है कि 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड पर अधिकार कर उसका नाम अपने बडें पुत्र खिज्र खां के नाम पर खिज्राबाद कर दिया।

3. श्शाहबाद का लेख (बांरा) -1679 (17 वीं सदी) बांरा जिले से प्राप्त इस लेख से ज्ञात होता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस ई. में गैर मुस्लिम जनता पर जजिया कर लगा दिया औंरगजेब की कर नीति की जानकारी भी प्राप्त होती है।

 

 

5. ताम्रपत्र

(खेरोदा का ताम्रपत्र) 15 वीं सदी के इस ताम्रपत्र से ही राणा कुम्भा द्वारा किए गए प्रायश्चित का वर्णन है। साथ ही मेवाड़ की धार्मिक स्थित की जानकारी भी प्राप्त होती है।

 

6. पुरालेखागारिय स्त्रोत

1. हकीकत बही- राजा की दिनचर्या का उल्लेख

2. हुकूमत बही - राजा के आदेशों की नकल

3. कमठाना बही - भवन व दुर्ग निर्माण संबंधी जानकारी

4. खरीता बही - पत्राचारों का वर्णन

5. राज्य अभिलेखागार बीकानेर में उपर्युक्त बहियां सग्रहीत है।

6. राष्ट्रीय पुरालेख विभाग -दिल्ली

7. कमठा लाग (TAX) भी है।

7. साहित्यिक स्त्रोत

राजस्थानी साहित्य -- साहित्यकार

1. पृथ्वीराजरासो -- चन्दबरदाई

2. बीसलदेव रांसो -- नरपति नाल्ह

3. हम्मीर रासो -- जोधराज

4. हम्मीर रासो -- शारगंधर

5. संगत रासो -- गिरधर आंसिया

6. बेलिकृष्ण रूकमणीरी -- पृथ्वीराज राठौड़

7. अचलदास खीची री वचनिका -- शिवदास गाडण

8. कान्हड़ दे प्रबन्ध -- पदमनाभ

9. पातल और पीथल -- कन्हैया लाल सेठिया

10. धरती धोरा री -- कन्हैया लाल सेठिया

11. लीलटास -- कन्हैया लाल सेठिया

12. रूठीराणी, चेतावणी रा चूंगठिया -- केसरीसिंह बारहड

13. राजस्थानी कहांवता -- मुरलीधर ब्यास

14. राजस्थानी शब्दकोष -- सीताराम लालस

15. नैणसी री ख्यात -- मुहणौत नैणसी

16. मारवाड रे परगाना री विगत -- मुहणौत नैणसी

संस्कृत साहित्य

1. पृथ्वीराज विजय -- जयानक (कश्मीरी)

2. हम्मीर महाकाव्य -- नयन चन्द्र सूरी

3. हम्मीर मदमर्दन -- जयसिंह सूरी

4. कुवलयमाला -- उद्योतन सूरी

5. वंश भासकर/छंद मयूख -- सूर्यमल्ल मिश्रण (बंूदी)

6. नृत्यरत्नकोष -- राणा कुंभा

7. भाषा भूषण -- जसवंत सिंह

8. एक लिंग महात्मय -- कान्ह जी ब्यास

9. ललित विग्रराज -- कवि सोमदेव

फारसी साहित्य

1. चचनामा -- अली अहमद

2. मिम्ता-उल-फुतूह -- अमीर खुसरो

3. खजाइन-उल-फुतूह -- अमीर खुसरों

4. तुजुके बाबरी (तुर्की) बाबरनामा -- बाबर

5. हुमायूनामा -- गुलबदन बेगम

6. अकनामा/आइने अकबरी -- अबुल फजल

7. तुजुके जहांगीरी -- जहांगीर

8. तारीख -ए-राजस्थान -- कालीराम कायस्थ

9. वाकीया-ए- राजपूताना -- मुंशी ज्वाला सहाय1. परिचय

गुर्जर प्रतिहार वंश

1. परिचय
1. संस्थापक- हरिशचन्द्र

2. वास्तविक - नागभट्ट प्रथम (वत्सराज)

3. पाल -धर्मपाल

4. राष्ट्रकूट-ध्रव
2. प्रतिहार-वत्सराज
1. राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई। ये अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया। नगभट्ट प्रथम पश्चिम से होने वाले अरब आक्रमणों को विफल किया। नागभट्ट प्रथम के बाद वत्सराज शासक बना। वह प्रतिहार वंश का प्रथम शासक था जिसने त्रिपक्षीप संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष/त्रिराष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया।

2. त्रिपक्षीय संघर्ष - 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पश्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है
3. नागभट्ट द्वितीय
वत्सराज के पश्चात् शक्तिशाली शासक हुआ उसने भी अरबों को पराजित किया किन्तु कालान्तर में उसने गंगा में डूब आत्महत्या कर ली।
4. मिहिर भोज प्रथम
इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर कन्नौज पर अपना अधिकार किया और प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया। मिहिर भोज की उपब्धियों की जानकारी उसके ग्वालियर लेख से प्राप्त होती है।

1. आदिवराह व प्रीाास की उपाधी धारण की।

2. आदिवराह नामक सिक्के जारी किये।

3. मिहिर भोज के पश्चात् महेन्द्रपाल शासक बना। इस वंश का अन्तिम शासक गुर्जर प्रतिहार वंश के पतन से निम्नलिखित राज्य उदित हुए।

4. मारवाड़ का राठौड़ वंश

5. मेवाड़ का सिसोदिया वंश

6. जैजामुक्ति का चन्देश वंश

7. ग्वालियर का कच्छपधात वंश
5. हुरड़ा सम्मेलन
हुरड़ा - भीलवाडा

1. 1707 ई. में औरंगजेब के निधन के पश्चात् मराठे अत्याधिक शक्तिशाली हो गए उन्होने उत्तर भारत पर आक्रमण कर चैथ व सरदेश मुखी नामक कर वसुले।

2. राजस्थान में मराठो ने सर्वप्रथम बंूदी में प्रवेश किया वे राजस्थान पर जबतब आक्रमण करते और चैथ व सरदेश मुखी कर वसुलते तब परेशान होकर जयपुर के सवाई जयसिंह ने राजस्थान के शासकों का आहान किया। सवाई जयसिंह ने हुरडा सम्मेलन 1734 ई में बुलाया। इस सम्मेलन में सभी रियासतों के शासक एकत्रित हुए। इसकी अघ्यक्षता मेवाड़ के शासक संग्राम सिंह द्वितीय द्वारा की जानी थी परन्तु सम्मेलन से पूर्व ही इनकी मृत्यु होने के कारण इस सम्मेलन की अध्यक्षता इनके पुत्र जगतसिंह द्वितीय ने की।

3. 16 व 17 जुलाई 1734 को सम्पन्न होने वाले इस सम्मेलन में मराठा आक्रमण के विरूद्ध संघ बनाकर उन्हें एकमुश्त (इकट्ठा) कर भुगतान करने का निश्चय किया। 17 जुलाई को सभी शासकों ने इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। किंतु सवाई जयसिंह ने मराठों से एक गुप्त संधि की परिणाम स्वरूप हुरडा सम्मेलन असफल सिद्ध हुआ।
6. गुर्जर-प्रतिहार
1. 8वीं से 10वीं शताब्दी में उत्तर भारत में प्रसिद्ध राजपुत वंश गुर्जर प्रतिहार था। राजस्थान में प्रतिहारों का मुख्य केन्द्र मारवाड़ था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार प्रतिहारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई है।

2. प्रतिहार का अर्थ है द्वारपाल प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण वंशिय सूर्य वंशीय या रधुकुल वंशीय मानते है। प्रतिहारों की मंदिर व स्थापत्य कला निर्माण शैली गुर्जर प्रतिहार शैली या महामारू शैली कहलाती है। प्रतिहारों ने अरब आक्रमण कारीयों से भारत की रक्षा की अतः इन्हें "द्वारपाल"भी कहा जाता है। प्रतिहार गुर्जरात्रा प्रदेश (गुजरात) के पास निवास करते थे। अतः ये गुर्जर - प्रतिहार कहलाएं। गुर्जरात्रा प्रदेश की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी।

3. मुहणौत नैणसी (राजपुताने का अबुल-फजल) के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की कुल 26 शाखाएं थी। जिमें से मण्डोर व भीनमाल शाखा सबसे प्राचीन थी।

4. मण्डौर श्शाखा का संस्थापक - हरिचंद्र था।

5. गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी -मण्डौर
7. भीनमाल शाखा

1. नागभट्ट प्रथम


नागभट्ट प्रथम ने 730 ई. में भीनमाल में प्रतिहार वंश की स्थापना की तथा भीनमाल को प्रतिहारों की राजधानी बनाया।

2. वत्सराज द्वितीय


*वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंश का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।

*औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।

*औसिंया (जोधपुर)के मंदिर प्रतिहार कालीन है।

*औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।

*औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।

*जिनसेन ने "हरिवंश पुराण " की रचना की।

*वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की शुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।

*त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घषकन्नौज को लेकर उत्तर भारत की गुर्जर प्रतिहार पूर्व में बंगाल का पाल वंश तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रवंष के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को त्रिपक्षिय संघर्ष कहा जाता है।

3. नागभट्ट द्वितीय

*वत्सराज व सुन्दर देवी का पुत्र। नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णतयः रोक लगाई। नागभट्ट द्वितीय ने गंगा समाधि ली। नागभट्ट द्वितीय ने त्रिपक्षिय संघर्ष में कन्नौज को जीतकर सर्वप्रथम प्रतिहारों की राजधानी बनाया।

4. मिहिर भोज (835-885 ई.)

*मिहिर भोज को आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। मिहिर भोज वेष्णों धर्म का अनुयायी था। मिहिरभोज प्रतिहारों का सबसे अधिक शक्तिशाली राजा था। इस काल चर्माेत्कर्ष का काल था। मिहिर भोज ने चांदी के द्रुम सिक्के चलवाये। मिहिर भोज को भोज प्रथम भी कहा जाता है। ग्वालियर प्रशक्ति मिहिर भोज के समय लिखी गई।

*851 ई. में अरब यात्री सुलेमान न मिहिर भोज के समय भारत यात्रा की। अरबीयात्री सुलेमान व कल्वण ने अपनी राजतरंगिणी (कश्मीर का इतिहास) में मिहिर भोज के प्रशासन की प्रसंशा की। सुलेमान ने भोज को इस्लाम का शत्रु बताया।

5. महिन्द्रपाल प्रथम

*इसका गुरू व आश्रित कवि राजशेखर था। राजशेखर ने कर्पुर मंजरी, काव्य मिमांसा, प्रबंध कोश हरविलास व बाल रामायण की रचना की। राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेश कहा है।

6. महिपाल प्रथम

*राजशेखर महिपाल प्रथम के दरबार में भी रहा। 915 ई. में अरब यात्री अली मसुदी ने गुर्जर व राजा को बोरा कहा है।

7. राज्यपाल

*1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।

8. यशपाल

*1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था।

भीनमाल

*हेनसांग/युवाचांग न राजस्थान में भीनमाल व बैराठ की यात्रा की तथा अपने ग्रन्थ सियू की मे भीनमाल को पोनोमोल कहा है। गुप्तकाल के समय का प्रसिद्व गणितज्ञ व खगोलज्ञ ब्रहमागुप्त भीनमाल का रहने वाला था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति का सिद्धान्त " ब्रहमास्फुट सिद्धान्त (बिग बैन थ्यौरी) का प्रतिपादन किया।

4.सांभर का चौहान वंश का इतिहास

 1. परिचय

शाकभरी का प्राचीन नाम सपादलक्ष था। सपादलक्ष का अर्थ सवा लाख गांवों का समूह। यहीं पर वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव डाली। इसने शाकभरी /सांभर को अपनी राजधानी बनाया। सांभर झील का निर्माण भी वासुदेव चौहान ने करवाया। वासुदेव चौहान की उपाधि महाराज की थी।

इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक पृथ्वीराज प्रथम था जिसकी उपाधि महाराजाधिराज की मानी जाती है। ओर पृथ्वीराज प्रथम ने गुजरात के भडौच पर अधिकार कर वहां आशापूर्णा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। तथा पृथ्वीराज के बाद अजयराज शासक बना। अजयराज ने 1113 ई. में पहाडियों के मध्य अजमेरू (अजमेर) नगर की स्थापना की और इस नगर को अपनी नई राजधानी बनाया
2. विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) (1153-1164 ई.)
पृथ्वी राज तृतीय के अलावा चौहान वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक विग्रहराज चतुर्थ हुआ। इसने पंजाब की भाण्डान को पराजित कर दूर भगा दिया। यह एक कवि हृदय शासक था। ओर इसको कविबांधव भी कहा जाता है। इन्होने स्वयं ने हरकेलि (नाटक) की रचना की। जिसमें शिव-पार्वती व कुमार कार्तिकेय का वर्णन किया गया है। इसके दरबारी कवि नरपति नाल्ह ने बीसलदेव रासो ग्रन्थ की रचना की। अन्य कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज की रचना की। 1153 से 1156 के मध्य विग्रहराज ने अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय का निर्माण करवाया जिसे 1200 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुडवाकर उसके स्थान पर ढाई दिन का झोपडा बनवाया। ओर यहां पर पंजाब शाह नामक सुफीसंत का ढाई दिन का उर्स भरता था इसी कारण इसे ढाई दिन का झोपडा कहा जाता है।

पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल तोमर ने दिल्ली की स्थापना की । अनंगपाल निसंतान था। अतः उसने अपना राज्य पृथ्वीराज को दे दिया। अब पृथ्वीराज ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। पृथ्वीराज व तूर्की शासक मोहम्मद गौरी की राज्य सीमाएं स्पर्श करने लगी। दोनों के मध्य तराइन के दो युद्ध हुए।
 3. तराइन का प्रथम युद्ध (1191)
तराइन के इस युद्ध में पुथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित कर दि
4. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192)
तराइन के इस युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज को पराजित कर उसकी हत्या कर दी और उसके पुत्र गोविन्द को राणथम्भौर का राज्य दे दिया।

पृथ्वीराज तृतीय और कन्नौज के शासक जयचन्द गहडवाल की पुत्री संयोगिता के मध्य प्रेम का प्रसिद्ध इतिहास रहा है। ओर प्रसिद्ध सूफी संत और चिश्ती सम्प्रदाय से संबंधित ख्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज तृतीय के समय अजमेर आये थे। अजमेर में ख्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती की दरगाह का निर्माण रजिया के पिता इल्तुतमिश ने करवाया।

देहलीवाल – वे सिक्के जो पृथ्वीराज चौहान के मध्य के थे और मोहम्मद गौरी ने उसके एकतरफ अपना निशान लगवाया और दूसरी तरफ लक्ष्मी आदि देवियों के चित्र बनवाये थे।
5. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192)
संस्थापक गोविन्दराज (1194 ई. में) को माना जाता है जो पृथ्वी राज तृतीय के पुत्र थे

हम्मीर देव चौहान (1282-1301)

1. चौहान वंश का अंतिम शासक हम्मीर देव चौहान ने अपने जीवनकाल में 18 युद्ध लडे व 17 में विजयी हुऐ। 1301 ई. में तुर्की शासक अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया इसका मुख्य कारण तूर्की के विद्रोही सैनिक मोहम्मदशाह व केहब्रु हम्मीर मास शरण में थे। तूर्की शासक ने जब उन्हे वापस मांगा तब हडी हम्मीर देव ने इनकार कर दिया। परिणाम स्वरूप (1301 ई.) में दोनों के मध्य युद्ध हुआ।

2. युद्ध के समय हम्मीर देव चौहान के दो सेनापति रणमल व रतिपाल ने विश्वासघात किया। हम्मीर देव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ और उसकी पत्नि रंगदेवी ने जल जोहर किया। रणथम्भौर युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के साथ अमीर खुसरौ व अलाउद्दीन का छोटा भाई उलुग खां ने भाग लिया था।

हम्मीर के नाम पर लिखे गये प्रमुख लेख (Hmmir major articles written in the name of)

1. हम्मीर हठ – चन्द्रशेखर ने लिखा था

2. हम्मीर रासौ – जोधराज ने लिखा था

3. हमीर महाकाब्य -नयनचन्द्र सूरी ने लिखा था

4. हम्मीर रासों – श्शारगंधर ने लिखा था

अजमेर दुर्ग की स्थापना – 7 वीं शताब्दी में अजयराज नें 1291 ई. में जब जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया था तो हम्मीर की तैयारियों व दुर्ग की अभेघता से घबराकर वह यह कहकर वापस लौट गया की- ” ऐसे दस किलो को भी मै मुसलमान के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता “।

5.सिसोदिया वंश

1. परिचय
1. 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई तब सिसोदा गांव के सामान्त हम्मीर ने अगले दस वर्षो में पूरे मेवाड़ पर अधिकार कर लिया और सिसोदा गांव का सामन्त होने के कारण उसने एक नयये वंश सिसोदिया वंश की स्थापना की।

2. उसे " विषमघाटी पंचानन" मेवाड़ का उद्धारक" और रसिक प्रिया ग्रन्थ में "वीरराजा" की संज्ञा दी गयी है। उसके समय ही " नटणी का चबुतरा बनवाया जो पिछाला झील के तट पर उदयपुर में है।

3. हम्मीर के पश्चात् खेता और राणा लाखा शासक हुआ राणा लाखा के समय उदयपुर में जावर की खानों की खोज हुई जो चांदी की खाने थी। इसी के समय 14 वीं सदी पिच्छू नाम बनजारे (चिडिमार) ने अपने बैल की स्मृति में उदयपुर में पिछौला झील का निर्माण करवाया।

4. राणा लाखा के पुत्र कुवंर चूडा का विवाह रणमल राठौड़ की बहन हंसा बाई से तय हुआ किन्तु स्वयं लाखा ने हंसा बाई से विवाह कर लिया। हंसा बाई ने अपने पुत्र को मेवाड का शासक, बनाने की शर्त रखी उसे कुवंर चूडा ने मान लिया। कुवंर ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की इसी चूडा को राजस्थान का भीेष्म पितामाह कहा जाता है। राणा लाखा के पश्चात् हंसाबाई से उत्पन्न उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का शासक बना। मोकल की हत्या 1433 ई. में उसके चाचा व मेरा नामक व्यक्ति ने की वे मोकल के पुत्र कुम्भा को भी मारना चाहते थें किन्तु मारवाड़ के रणमल राठौड व मेवाड़ के राधव देव सिसोदिया ने कुम्भा को सुरक्षित मेवाड़ का शासक बनाया।
2. रााणा कुम्भा (कुंभकरण)
*1433-1468 ई. राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक मेवाड़ के 84 दुर्गो में से 32 दुर्ग बनवाएं राजनीतिक व सांस्कृतिक दृष्टि कुम्भा का स्थान महत्वपूर्ण है। उन्होंने 1433 में सारंगपुर के युद्ध में मालवा के शासक महमुद खिलजी प्रथम को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष में 1444 में चित्तौड़ के विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया वर्तमान में विजय स्तम्भ राजस्थान पुलिस का प्रतिक चिन्ह है। इसके वास्तुकार राव जैता थे।

1. विजय स्तम्भ

2. कीर्ति स्तम्भ

3. कुम्भ श्याम मंदिर (मीरा मंदिर)

4. कुंभलगढ दुर्ग (राजसंमद)

5. मचाना दुर्ग (सिरोही)

6. बसंती दुर्ग (सिरोही)

7. अचलगढ़दुर्ग (माऊट आबू)

*राणा कुंभा संगीत के विद्वान थे। उन्हे " अभिन्व भत्र्ताचार्य" भी कहा जाता हैं कुंभा ने "संगीतराज " "रसिकप्रिय" "नृत्य" "रतन कोष" व "सूढ प्रबंध" ग्रन्थों की रचना की थी। रसिका प्रिया गीत गोविन्द पर टीका है। राणा कुंभा के दरबार में प्रसिद्ध शिल्पकार मण्डन था। जिसने "रूप मण्डन" "प्रसाद मण्डन" "वास्तुमण्डन" "रूपावतार मण्डन" ग्रन्थों की रचना की। रूपावतार मण्डन (मूर्ति निर्माण प्रकरण) इसमें मूर्ति निर्माण की जानकारी मिलती है। मण्डन के भाई नाथा ने "वस्तुमंजरी" पुस्तक की रचना की मण्डन के पुत्र गोविन्द ने "उद्धार घौरिणी" "द्वार दीपिक" व कुंभा के दरबारी कवि कान्ह जी व्यास ने "एकलिंग में ग्रंथ लिखा। 1468 ई. कुंभलगढ़ दुर्ग में राणा कुंभा के पुत्र ऊदा (उदयकरण) ने अपने पिता की हत्या कर दी। उदयकरण को पितृहंता कहा जाता है।

*ऊदा (उदयकरण) → रायमल (1509 में देहांत) ↓

*​पृथ्वी राज सिसोदिया (उडना राजकुमार) - राणासंग्राम सिंह(1509-1528) (हिन्दुपात)(5 मई 1509 में राज्यभिषेक 30 जनवरी 1528 में मृत्यु)

*कुंभा के पुत्र रायमल ने ऊदा को मेवाड़ से भगा दिया एवं स्वयं शासक बना। रायमल का बडा पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया तेज धावक था। अतः उसे उडना राजकुमार कहा जाता था। 1509 ई में रायमल का पुत्र संग्राम सिंह मेवाड का शासक बना।
3. रााणा सांगा (संग्राम सिंह -1509-1528)
1509 ई. में जब राणा सांगा का राज्यभिषेक हुआ। तब दिल्ली का शासक सिकन्दर लोदी था। 1505 में उसने आगरा की स्थापना करवाई। 1517 में उसकी मृत्यु के उपरान्त इसका पुत्र इब्राहिम लोदी शासक बना। उसने मेवाड़ पर दो बार आक्रमण किया।

1. खातोली का युद्ध (बूंदी) 1518 2.बारी (धौलपुर) का युद्ध

दोनो युद्धो में इब्राहिम लोदी की पराजय हुई। 1518 से 1526 ई. तक के मध्य राणा सांगाा अपने चरमोत्कर्ष पर था। 1519 में राणा सांगा ने गागरोन के युद्ध में मालवा के शासक महमूद खिल्ली द्वितीय को पराजित किया।

पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रेल 1526)

1. मूगल शासक बाबर

2. पठान शासक इब्राहिम लोदी

इस युद्ध में बाबर की विजय हुई और उसने भारत में मुगल वंश की नीव डाली। 1527 में बाबर व रााणा सांगा के मध्य दो बार युद्ध हुआ -

फरवरी 1527 में बयाना का युद्ध (भरतपुर) सांगा विजयी, 17 मार्च 1527 खानवा युद्ध (भरतपुर)

खानवा युद्ध (भरतपुर)

1. बाबर - संयुक्त सेना

2. मुगल सेना - राणा सांगा विजयी    

-मारवाड शासक राव गंगा -इसने अपने पुत्र

-माल देव के नेतृत्व मे 4000 सैनिक भेजे

- बीकानेर - कल्याण मल

-आमेर- पृथ्वीराज कछवाह

-हसन खां मेवाती -खानवा युद्ध में सेनापति

-चदेरी का मेदिनी राय

-बागड़ (डंूगरपुर)का रावल उदयपुरसिंह व खेतसी

-देवलिया का राव बाघ सिंह

- ईडर का भारमल

-झाला अज्जा

*बाबर ने इस युद्ध को जेहाद (धर्मयुद्ध) का नाम दिया। इस युद्ध में बाबर की विजय हुई। बाबर ने गाजी (विश्वविजेता) की उपाधी धारण की। 1528 ई. में राणा सांगा को किसी सामन्त ने जहर दे दिया परिणामस्वरूप सांगा की मृत्यु हो गई। सांगा का अन्तिम संस्कार भीलवाडा के माडलगढ़ नामक स्थाप पर किया गया जहां सांगा की समाधी /छतरी है।

*राणा सांगा के शरीर पर 80 से अधिक धाव थे कर्नल जेम्स टाॅड ने राणा सांगा को मानव शरीर का खण्डहर (सैनिक भग्नावेश) कहा है।
4. रााणा सांगा
1. मीरा बाई राणा प्रताप की ताई थी भोजराज पत्नी-मीराबाई 1525 मे भोजराज की मृत्यु रत्न सिंह (1528-31)विक्रमसिंह (1531-36)उदयसिंह (1537-72)

2. उदयसिंह(1537-72) → राणा प्रताप(1572-97) → अमर सिंह(1597-60) → कर्ण सिंह(1620-28) → जगत सिंह(1628-1652) → राजसिंह(1652-1680)

3. विक्रम सिंह ने रिश्वत देकर बहादुर शाह को भेज दिया। 1536 ई. में दासी पुत्र बनवीर ने कौमुदी महोत्सव के दौरान विक्रम सिंह की हत्या कर दी। बनवीर विक्रम सिंह के छोटे भाई उदय सिंह को भी मारना चाहता था, किन्तु पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान कर कुवंर उदयसिंह की रक्षा की और उसे सुरक्षित कुम्भलगढ़ दुर्ग में पहुंचा दिया। पन्नाधाय को मेवाड़ के इतिहास में उसकी स्वामीभक्ति व बलिदान के लिए जाना जाता है।

आशा सिंह देवपुरा

1. उदयसिंह का पालन-पौषण कुम्भलगढ़ दुर्ग में आशा सिंह देवपुरा द्वारा किया गया। पाली के अखेराज चैहान ने अपनी पुत्री जयवन्ता बाई का विवाह उदयसिंह से किया। 1540 में जयवन्ता बाई ने राणा प्रताप को जन्म दिया। मेवाड के सामन्तो ने बनवीर को गद्दी से उतार कर उदयसिंह को मेवाड का शासक बनवाया।

2. आरम्भ में उदयसिंह ने श्शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की किन्तु 1545 में कलिंजर आक्रमण के समय उक्का नामक विस्फोटक पदार्थ से शेरशाह की मृत्यु हो गई तब उदयसिंह ने अपनी स्वतंत्रता स्थापित की।

 5. राणा उदयसिंह
1. उदयपुर की स्थापना -1559 ई.

2. उदयपुर सागर झील का निर्माण करवाया

3. अकबर ने उदयपुर पर आक्रमण किया -1567-68

4. इस युद्ध में उदयसिंह के सेनानायक जयमल व पन्ना ने उदयसिंह को गोगुदा की पहाडियों में भेज दिया। मुगल व मेवाड़ सेना में घमासान युद्ध हुआ। जयमल के घायल होने पर वे अपने भतीजे के कन्धों पर बैठकर दोनों हाथों से वीरतापूर्वक लडे़ और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए।

5. कल्ला जी राठौड़ का चतुर्भुज देवता कहा जाता है। अकबर ने 30 हजार युद्ध बन्दियों को मरवा दिया अकबर के जीवन में यह एक धब्बा माना जाता है। अकबर कलंक को धोने के लिए जयमल व पन्ना की पाषाण मूर्ति आगरा के दुर्ग के बाहर स्थापित करवाई। 1572 में गोगुदा की पहाडियों में उदयसिंह का निधन हो गया।

 6. राणा प्रताप - 1572-1597
- जन्म - 9 मई 1540 कुम्भलगढ़ दुर्ग

- माता - जयबन्ता बाई

- उपनाम - कीका

- राज्यभिषेक - गोगुन्दा की पहाडियों में

1. राणा प्रताप को उत्तराधिकार में अकबर जैसा शत्रु व मेवाड़ का पूरी तरह से उजडा राज्य प्राप्त हुआ। आरम्भ में अकबर ने राणा प्रताप के पास चार दूत मण्डल भेजे।

*जलाल खां - नवम्बर 1572

*मान सिंह - जून 1573

*भगवान दास - सितम्बर 1573

*टोडरमल - दिसम्बर 1573

2. किन्तु राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अतः 18 जून 1576 को प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।

*हल्दी घाटी युद्ध 21 जून 1576

*मेवाड़ सेना

*राणा प्रताप - हाकिम खांसूर

*मुगल सेना

*मानसिंह - आसफ खां

3. आरम्भ में युद्ध का पलड़ा मेवाड़ के पक्ष में रहा। अकबर के आने की अफवाह ने मुगल सेना को जोश दिया और युद्ध मूगलों के पक्ष में चला गया। युद्ध बीदा झाला ने राणा प्रताप की जान बचाई। इस युद्ध के प्रत्यक्ष दर्शी लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने अपनी पुस्तक 'मुन्तखब अल तवारिख' में इस युद्ध को "गोगुन्दा का युद्ध" कहा है।

4. अकबर के नवरतन अबुल फजल ने अपनी पुस्तक आइने अकबरी में इसे "खमनौर का युद्ध" की संज्ञा दी है।

5. युद्ध के दौरान राणा प्रताप के प्रिय घोडे़ चेतक के पांव में चोट लग गई। हल्दी घाटी के समीप बलिचा गांव में चेतक की समाधाी बनी हुई है।

6. पाली के भामाशाह ने 20 लाख स्वर्ण मुद्राऐं राणा प्रताप को भेट की जिससे मेवाड़ की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ राणा प्रताप ने मुगलों से युद्ध जारी रखा।

दिवेर का युद्ध 1582

1. इस युद्ध में राणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

2. मेवाड़ का मेराथन - कर्नल जेम्स टोड

-चावड़ को राजधानी बनाया

-1597 ई. में राणा प्रताप का देहान्त

-अन्तिम संस्कार -बाडोली (उदयपुर) में

-बाडोली में राणा प्रताप की समाधि स्थित है। यहां पर महाराणा प्रताप की आठ खम्भों पर बनी भव्य छतरी है।
7. राणा अमर सिंह (1597-1620)
1. 15 फरवरी 1615 मुगल-मेवाड़ संधि

2. अमरसिंह व जहांगीर के मध्य

3. जहांगीर ने इस संधि पर मैगजीन दुर्ग (अजमेर) में हस्ताक्षर किए 1615 ई. में सर टाॅमस से मैगजीन दुर्ग में जहांगीर से प्रथम बार मिला था। इस संधि से मेवाड़ मूगलों के अधीन हो गया। 1620 में अमर सिंह का देहान्त हो गया। अमरसिंह, जगत सिंह, राणा सिंह
8. राणा राजसिंह (1652-1680)
1. औरंगजेब को तीन बार पराजित किया । मेवाड के शासको में राणा राजसिंह ने मुगलों से प्रतिरोध की नीति अपनाई। उसने औरंगजेब को तीन युद्धों में पराजित किया। उसने राजसंमद झील का निर्माण करवाया जिसका उत्तरी भाग नौ चैकी के नाम से विख्याता है यहीं पर राजप्रशस्ति के नाम से विख्याता लेख अंकित है जो कि संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति लेख है। राजसिंह के समय चित्रकला की नाथद्वारा शैली का विकास हुआ। पिछवाई चित्रकला इस शैली की प्रमुख विशेषता है जिसमें श्री कृष्ण की बाललिलाओं का चित्रण है।

2. राणा राजसिंह का एक सेनापति चुडावत सरदार रतन सिंह था। उसका विवाह हाडा रानी सहल कवंर से हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही रतनसिंह को युद्ध के लिए जाना पड़ा चूडावत सरदार ने अपने पत्नि से निशानी की मांग की। हाडा रानी ने अपना सिर काट कर दे दिया।1680 में राजसिंह का देहान्त हो गया। राणा राजसिंह ने नाथद्वारा के सिवाड़ (सिहाड) नामक स्थान पर श्री कृष्ण का मंदिर बनवाया। राजसिंह न राजसंमद जिले के कांकरोली नामक स्थान पर द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण करवाया।राणा राजसिहं की मृत्यु के पश्चात् उनका पुत्र जयसिंह मेंवाड़ का शासक बना। उसने जयसमंद झील का निर्माण करवाया । 1734 ई में हुरडा सम्मेलन (भीलवाडा) मेवाड़ क्षेत्र में हुआ। इसका उद्देश्य मराठो के विरूद्ध संघ बनाना था। हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता जगतसिंह ने की

6.राजपूतो का इतिहास

1. परिचय
1. 47 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उसका सम्पूर्ण राज्य छोटे- छोटे-राज्यों में विभाजन हो गया था। जिस के कारण अधिकांश राज्य राजपूत जाति के ही थे। जिसके कारण 7 वी से 12 वीं सदी भारतीय इतिहास में राजपूत युग के नाम से जाना जाता है।

2. राजपूतो की उत्पत्ति (Origin of the Rajputs)

भारतीय उत्पत्ति

(a). प्राचीन क्षेत्रियों से (From ancient Kshetriyon)

(1) सी.वी.वैध ,(2)जी.एच. ओझा ,(3)दशरथ शर्मा

(b). अग्निकुण्ड का सिद्वान्त (Principles of Agnikund)

(1.सूर्यमल मिश्रण, 2.चन्द्रबर दाई)
 2. चौहान (Chauhan)
चालुक्य (सौलंकी), प्रतिहार ,परमार

(2). विदेश उत्पत्ति (Foreign Origin)

कर्नल जेम्स टाड, शक (सीथियन) , वी.ए. स्मीथ ,शक कुषाण हूण पहलव

(1). मेवाड़ का गुहिल/सिसोदिया वंश (Guhil of Mewar / Sisodia dynasty)

राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में उदयपुर के आस-पास के क्षेत्र को मेवाड़ कहा जाता था। यहीं पर गुहिल वंश की स्थापना हुई है।
3. गुहिल वंश (Guhil descent)
1. राजस्थान के इतिहास के जनक कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ” एनाल्स एण्ड अटीक्वीटीज आफ राज ” में लिखा है। कि गुजरात में वल्लभी का राजा शिलादित्य की पत्नी पुष्पावती ने गुहादित्य नामक पुत्र को जन्म दिया। इसी कुह ने मेवाड़ में गुहिल वंश की नीव रखी। तथा अन्य इतिहासकारो के अनुसार मेवाड़ में हारित कृषि के शिल्प और ग्वाले काला भोज (बप्पा रावल) ने हारित ऋर्षि के आशीर्वाद से इस वंश की नीव रखी थी।

2. मेवाड़ में गुहिल वंश का संस्थापक –गुह (गुहादित्य)

3. मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक – बप्पा रावल 734-753 ई.
4. बप्पारावल (Bpparavl)
1. बप्पारावल का कार्याकाल -728-753 ई.

2. बप्पारावल ने अपनी राजधानी –नागदा को बनाई ।

3. बप्पारावल ने नागदा में सहस्रबाहु (सास बहु का मंदिर) बनवाया

4. बप्पारावल जो शिव का उपासक था उसने सोने के सिक्के चलाएं नागदा में दो मंदिर बनवाए ।(1) बड़ा मंदिर सास व (2) छोटा मंन्दिर बहू का मंदिर कहलाता है।

5. बप्पारावल ने स्वर्ण सिक्के पर त्रिशूल का चिन्ह  तथा दूसरी तरफ सूर्य का अंकन करवाया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बप्पा रावल भगवान शिव के उपासक थे और स्वयं को सूर्यवंशी मानते थे।

6. बप्पा रावल ने उदयपुर के एकलिंग जी नामक स्थान पर शिव के 18 अवतारों में से एक लकुलिश(शिव) का मंदिर बनवाया जो कि राजस्थान मे एक मात्र लुकलिश मंदिर है। 753 ई. में बप्पा रावल का देहान्त हो गया।
5. जैत्र सिंह (Jatr Singh)
1. बप्पा रावल के पश्चात् इस वंश का इतिहास अंधकार मय है। क्योकि 13 वीं सदी में जब रजिया सुल्तान के पिता इल्तुतमिश (अल्तमश) ने मेवाड़ की राजधानी नागद पर आक्रमण कर नागद को तहस नहस कर दिया था तो उस समय मेवाड़ का शासक जेत्रसिंह था।

2. जैत्र सिंह ने चित्तौड़ को अपनी नयी राजधानी बनाया। ओर जब इल्तुतमिश ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब जेत्रसिंह ने इल्तुतमिश को पराजित कर दिया। ओर 1260 में महारावल तेजसिंह के समय “श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी” नामक मेवाड़ के प्रथम चित्रित ग्रन्थ की रचना

 

6. रतन सिंह (Ratan Singh 1302 -1303)
1. 1302 ई हुई 1302 मे मेवाड़ का शासक रतन सिंह बना। ओर जब रतनसिंह का राज्यभिषेक हुआ और 1303 में दिल्ली के शासक आलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया जिसका प्रमुख कारण आलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्य विस्तार नीति था। परन्तु 1540 में मलिक मोहम्म ज्ञायसी ने पद्मावत की रचना के अनुसार रतन सिंह की पत्नि रानी पद्मिनी जो अत्यधिक सुन्दर थी। उसे प्राप्त करने के लिए आलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड पर आक्रमण किया इस युद्ध में मेवाड़ शासक रतनसिंह व गोरा-बादल वीरगति को प्राप्त हुए। रानी पद्मिनी ने 1600 दासियों के साथ मिलकर जौहर किया यह जौहर मेवाड का प्रथम शाका कहलाया है। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया

2. अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया। अमीर खुसरो इस युद्ध मे अलाउद्दीन के साथ ही था।

7.राजस्थान के दुर्ग

1. परिचय
राजस्थान के राजपूतों के नगरों और प्रासदों का निर्माण पहाडि़यों में हुआ, क्योकि वहां शुत्रओं के विरूद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे।

शुक्रनीति में दुर्गो की नौ श्रेणियों का वर्णन किया गया।

1. एरण दूर्ग

खाई, कांटों तथा कठौर पत्थरों से युक्त जहां पहुंचना कठिन हो जैसे - रणथम्भौर दुर्ग।

2. पारिख दूर्ग

जिसके चारों ओर खाई हो जैसे -लोहगढ़/भरतपुर दुर्ग।

3. पारिध दूर्ग

ईट, पत्थरों से निर्मित मजबूत परकोटा -युक्त जैसे -चित्तौड़गढ दुर्ग

4. वन/ओरण दूर्ग

चारों ओर वन से ढ़का हुआ जैसे- सिवाणा दुर्ग।

5. धान्व दूर्ग

जो चारों ओर रेत के ऊंचे टीलों से घिरा हो जैसे-जैसलमेर ।

6. जल/ओदक

पानी से घिरा हुआ जैसे - गागरोन दुर्ग

7. गिरी दूर्ग

एकांत में पहाड़ी पर हो तथा जल संचय प्रबंध हो जैसे-दुर्ग, कुम्भलगढ़

8. सैन्य दूर्ग

जिसकी व्यूह रचना चतूर वीरों के होने से अभेद्य हो यह दुर्ग माना जाता हैं

9. सहाय दूर्ग

सदा साथ देने वाले बंधुजन जिसमें हो।
2. चित्तौड़गढ़ दुर्ग
1. यह चित्रकुट पहाड़ी पर बना, राजस्थान का प्राचीनतम गिरी दुर्ग है।

2. इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य यह मेवाड़ शासक है न कि मौर्य ने 8 वीं सदी में करवाया। इस दुर्ग को राजस्थान का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेशद्वार तथा दुर्गों का सिरमौर कहा जाता हैं

3. इस किले के बारे में कहा जाता है कि "गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया"।

4. यह दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है।

दर्शनीय स्थल

1. विजय स्तम्भ/कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति

*मेवाड के महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में 1439-40 में भगवान विष्णु के निमित विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

*सांरगपुर का युद्ध (1437 ई.)

*इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है।

*यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है।

*इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है।

*इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते हैं

*विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूंजा को माना जाता है।

*विद्धानों ने कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति का रचयिता कवि अत्रि तथा उसके पुत्र महेश को माना जाता है।

2. जैन कीर्ति स्तम्भ

*चित्तौडगढ़ दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण अनुमानतः बघेरवाल जैन जीजा द्वारा 11 वीं या 12 वी. शताब्दी में करवाया गया।

*यह 75 फुट ऊंचा और 7 मंजिला है।

*कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।

*इस दुर्ग के सात द्वार थे।

*दुर्ग के बाहर बाघ सिंह की छत्तरी है।

*यहां स्थित कालीमाता मंदिर पहले सूर्य मंदिर था।

साके

1.प्रथम साका

*सन् 1303 ई. में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ।

*चित्तौडगढ़ को आक्रान्त करने वाला आक्रान्ता अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद

2.द्वितीय साका

*1534 ई. में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के समय शासक बहादुर शाह ने किया।

*युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया।

3.तृतीय साका

*सन् 1567 ई. में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था।

*चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कवि और लेखक अमीर ने अपनी कृति तारीख -ए-अलाई में प्रस्तुत किया।

*चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल (रिश्ते मे पदमिनी के थे) शहीद हुए।

*चित्तौडगढ़ का तृतीय साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।

 3. अजयमेरू दुर्ग(तारागढ़)
1. बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस दुर्ग को गढ़बीठली के नाम से जाना जाता है।

2. यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है।

3. इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चैहान नरेश अजयराज ने करवाया।

4. मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वी राज (उड़ाणा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।

5. रूठी रानी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही।

6. तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे "राजस्थान का जिब्राल्टर " अथवा "पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर" कहा है।

7. इतिहासकार हरबिलास शारदा ने "अखबार-उल-अखयार" को उद्घृत करते हुए लिखा है, कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।

8. तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।

9. रूठी रानी का वास्तविक नाम उम्रादे भटियाणी था।

4. तारागढ दुर्ग(बूंदी)

1. इस दुर्ग का निर्माण देवसिंह हाड़ा/बरसिंह हाड़ा ने करवाया।

2. तारे जैसी आकृति के कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा।

3. यह दुर्ग "गर्भ गुंजन तोप" के लिए प्रसिद्ध है।

4. भीम बुर्ज और रानी जी की बावड़ी (राव अनिरूद्ध सिंह) द्वारा इस दुर्ग मे स्थित हैं

5. रंग विलास (चित्रशाला) इस दुर्ग में स्थित हैं।

6. रंग विलास चित्रशाला का निर्माण उम्मेद सिंह हाड़ा ने किया।

7. इतिहासकार किप्ल्रिन के अनुसार इस किले का निर्माण भूत-प्रेत व आत्माओं द्वारा किया गया। तारागढ दुर्ग (बूंदी) भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध किया जाता है।
5. रणथम्भौर दुर्ग(सवाई माधोपुर)
1. सवाई माधोपुर जिले में स्थित यह दुर्ग अरावली की घिरा हुआ एरण दुर्ग है।

2. दूर से देखने पर यह दुर्ग दिखाई नहीं देता है।

3. यह दुर्ग जगत/जयंत द्वारा निर्मित दुर्ग है।

4. अबुल फजल ने इस दुर्ग के लिए लिखा है कि " अन्य नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।"

दर्शनिय स्थल

1. रनिहाड़ तालाब

2. जोगी महल

3. सुपारी

4. जोरां-भोरां/जवरां- भवरां के महल

5. त्रिनेत्र गणेश

6. 32 कम्भों की छत्तरी

7. रानी महल 8. हम्मीर
6. मेहरानगढ़ दुर्ग(जोधपुर)
1. राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव मई, 1459 में रखी गई।

2. मेहरानगढ़ दुर्ग चिडि़या-टूक पहाडी पर बना है।

3. मोर जैसी आकृति के कारण यह किला म्यूरघ्वजगढ़ कहलाता है।

दर्शनिय स्थल

1.चामुण्डा माता मंदिर -यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया। 1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह न करवाया।

2.चैखे लाव महल- राव जोधा द्वारा निर्मित महल है।

3.फूल महल - राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल है।

4. फतह महल - इनका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।

5. मोती महल - इनका निर्माता सूरसिंह राठौड़ को माना जाता है।

6. भूरे खां की मजार

7. महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय)

8. दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चैकी (श्रृंगार चैकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था।

दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उन्ति - " जबरों गढ़ जोधाणा रो"

ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि - इस दुर्ग का निर्माण देवताओ, फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।

दुर्ग में स्थित प्रमुख तोपें- 

1. किलकिला

2. शम्भू बाण

3. गजनी खां

4. चामुण्डा

5. भवानी
7. सोनारगढ़ दुर्ग(जैसलमेर)
1. इस दुर्ग को उत्तर भड़ किवाड़ कहते है।

2. यह दुर्ग धान्व व गिरी श्रेणी का दुर्ग है।

3. यह दुर्ग त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर बनी है।

4. दुर्ग के अन्य नाम - गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़

5. स्थापना -राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. में हुआ।

6. दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।

7. पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है।

8. इस किले में 99 बुर्ज है।

9. यह दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा फोर्ट है।

10. जैसलमेर दुर्ग की सबसे प्रमुख विशेषता इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जो जिनभद्र कहलाता है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया गया।

11. आॅस्कर विजेता " सत्यजीतरे" द्वारा इस दुर्ग फिल्म फिल्माई गई।

जैसलमेर में ढाई साके होना लोकविश्रुत है।

1.पहला साका - दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के मध्य युद्ध हुआ।

2.द्वितीय साका - फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण रावल दूदा व त्रिलोक सिंह के नेतृत्व मे वीरगति प्राप्त की।

3.तीसरा साका - जैसलमेर का तीसरा साका जैसलमेर का अर्द्ध साका राव लूणसर में 1550 ई. में हुआ। आक्रमणकत्र्ता कन्द शासक अमीर अली था।

प्रसिद्व उक्ति

1. गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरा, अधगढ़ बीकानेर।

2. भलो चिणायों भाटियां, गढ ते जैसलमेर।

अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि केवल पत्थर की टांगे ही यहां पहुंचा सकती है।

 8. मैग्जीन दुर्ग(अजमेर)
1. यह दुर्ग स्थल श्रेणी का है।

2. मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित है।

3. इस दुर्ग को " अकबर का दौलतखाना" के रूप में जाना जाता है।

4. पूर्णतः मुस्लिम स्थापत्य कला पर आधारित है।

5. सर टाॅमस ने सन् 1616 ई. में जहांगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में प्रस्तुत किया
9. आमेर दुर्ग-आमेर (जयपुर)
यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है।

इसका निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह ने करवाया।

यह किला मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

1. शीला माता का मंदिर

2 सुहाग मंदिर

3 जगत सिरोमणि मंदिर

प्रमुख महल

1. श्शीश महल

2.दीवान-ए-खाश

3. दीवान-ए-आम

विशेष हैबर आमेर के महलों की सुंदरता के बारे में लिखता है कि " मैने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रह्राा के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है।"

मावठा तालाब और दिलारान का बाग उसके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते है। 'दीवान-ए-आम' का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह द्वारा किया गया।

 10. जयगढ दुर्ग(जयपुर)
1. यह दुर्ग चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।

2. इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जययसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।

3. इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है।

4. सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।

5. आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री श्री मति इन्द्रागांधी ने खजाने की प्राप्ति के लिए किले की खुदाई करवाई गई।

6. विजयगढ़ी भवन (अंत दुर्ग) कच्छवाह शासकों की शान है।
11. नहारगढ दुर्ग(जयपुर)
1. इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया।

2. किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है।

3. नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नहारगढ़ रखा गया।

4. राव माधों सिंह - द्वितीय ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए एक किले का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।
12. गागरोण दुर्ग(झालावाड़)
1. इस दुर्ग का निर्माण परमार वंश की डोड शाखा के शासक बीजलदेव ने करवाया।

2. डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से जाना गया।

3. "चैहान कुल कल्पद्रुम" के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू न अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा।

4. यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा अनूठा किला है।

5. गागरोण दुर्ग कालीसिंध व आहु नदियों के संगम पर बना जल श्रेणी का दुर्ग है।

दर्शनीय स्थल:

1. संत पीपा की छत्तरी

2. मिट्ठे साहब को दरगाह (जैतसिंह के शासनकाल में खुरासान से प्रसिद्ध सूफीसंत हमीदुद्दीन चिश्ती (मिट्ठे साहब) गागरोण आए।)

3. जालिम कोट परकोटा

4. गीध कराई

साके

1.पहला साका - सन् 1423 ई. में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के मध्य भीष्ण युद्ध हुआ। जीत के बाद दुर्ग का भार शहजाते जगनी खां को सौपा गया।

गागरोज के प्रथम साके का विवरण शिवदास गाढण द्वारा लिखित पुस्तक ' अचलदास खींची री वचनिका' में मिलता है।

2.दूसरा साका - सन् 1444 ई. में वाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुग् में पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) ने नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया।

3. महमूद खिलजी ने विजय के उपरांत दुर्ग का नाम बदल कर मुस्तफाबाद रखा।

4. अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।

5. विद्वानों के अनुसार इस पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्व ग्रन्थ "वेलिक्रिसन रूकमणीरी" गागरोण में रहकर लिखा।

 

13. कुम्भलगढ़ दुर्ग(राजसमंद)

1. अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है।

2. इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि. संवत् 1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया।

3. इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की व देखरेख में हुआ।

4. इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है।

5. इस किले की ऊंचाई के बारे में अतृल फजल ने लिखा है कि " यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।"

6. कर्नल टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना "एस्टुकन"से की है।

7. इस दुर्ग के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चैड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे 'भारत की महान दीवार' भी कहा जाता है।

दुर्ग के अन्य नाम - कुम्भलमेर कुम्भलमेरू, कुंभपुर मच्छेद और माहोर।

1. कुम्भलगढ दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग भी स्थित है, जिसे कटारगढ़ कहते है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान रहा है।

2. महाराणा कुम्भा की हत्या उनके ज्येष्ठ राजकुमार ऊदा (उदयकरण) न इसी दुर्ग में की।

3. इस दुर्ग में 'झाली रानी का मालिका' स्थित है।

4. उदयसिंह का राज्यभिषेक तथा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआा है

 14. बयाना दुर्ग (भरतपुर)

1. यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।


2. इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव न करवाया।


अन्य नाम- शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है।


अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।


दर्शनिय स्थल


1.भीमलाट- विष्णुवर्घन द्वारा लाल पत्थर से बनवाया गया स्तम्भ


2.विजयस्तम्भ- समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित स्तम्भ है।


3.ऊषा मंदिर


4. लोदी मीनार

 15. सिवाणा दुर्ग(बाड़मेर)

1. यह दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है।


2. कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है।


3. इस दुर्ग का निर्माण श्री वीरनारायण पवांर ने छप्पन की पहाडि़यों में करवाया।


इस दुर्ग में दो साके हुए है।


1.पहला साका - सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण सांका हुआ।


2.दूसरा साका - वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।

 

16. जालौर दुर्ग(जालौर)
1. प्राचीन नाम - जाबालीपुर दुर्ग तथा कनकाचल।

2. अन्य नाम- सुवर्णगिरी, सोनगढ़।

परमार शासकों द्वारा सुकडी नदी के किनारे निर्मित हैं

1. यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।

2. यह दुर्ग सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग है।

साका

1. सन् 1311 ई. में कान्हड देव चैहान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। इस आक्रमण में कान्हडदेव चैहान व उसका पुत्र वीरदेव वीरगति को प्राप्त हुुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया।

2. इस साके की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हडदेव में मिलती है।

3. संत मल्किशाह की दरगाह इस दुर्ग के प्रमुख और उल्लेखनीय थी।

 17. भैंसरोड़गढ दुर्ग(चित्तौड़गढ)
1. बामणी व चम्बल नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।

2. भैंसरोडगढ़ दुर्ग को "राजस्थान का वेल्लोर" कहते है।

3. इस दुर्ग का निर्माता भैसाशाह व रोडावारण को माना जाता है।
18. मांडलगढ़ दुर्ग(भीलवाडा)
1. इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया।

2. यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।

3. मांडलगढ़ दुर्ग बनास, बेडच व मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है।

4. यह दुर्ग सिद्ध योगियों का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है।

19. भटनेर दुर्ग(हनुमानगढ़)
1. इस दुर्ग का निर्माण सन् 285 ई. में भाटी राजा भूपत ने करवाया।

2. घग्धर नदी के मुहाने पर बसे इस, प्राचीन दुर्ग को " उत्तरी सीमा का प्रहरी" कहा जाता है।

3. भटनेर दुर्ग धान्वन श्रेणी का दुर्ग है।

इस दुर्ग पर सर्वाधिक आक्रमण हुए। विदेशी आक्रमणकारियों में

1. महमूद गजनवी न विक्रम संवत् 1058 (1001 ई.) में भटनेर पर अधिकार कर लिया था।

2. 13 वीं शताब्दी के मध्य में गुलाम वंश के सुल्तान बलवन के शासनकाल में उसका चचेरा भाई शेर खां यहां का हाकिम था।

3. 1398 ई. में भटनेर को प्रसिद्ध लुटेरे तैमूरलंग के अधिन विभीविका झेलनी पड़ी।

बीकानेर के चैथे शासक राव जैतसिंह ने 1527 ई. में आक्रमण कर भटनेर पर पहली बार राठौडों का आधिपत्य स्थापित हुआ। उसने राव कांधल के पोत्र खेतसी को दुर्गाध्यक्ष नियुक्त किया

4. ह्रमायू के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया।

5. सन् 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार को जाब्ता खां भट्टी से भटनेर दुर्ग हस्तगत कर लिया। भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा गया।

6. तैमूर लंग ने इस दुर्ग के लिए कहा कि " उसने इतना व सुरक्षित किला पूरे हिन्तुस्तान में कहीं नही देखा।" तैमूरलग की आत्मकथा " तुजुक-ए-तैमूरी "के नाम से है।

7. यह दुर्ग 52 बीघा भूमि पर निर्मित है।

8. 6380 कंगूरों के लिए प्रसिद्ध है।

9. इस दुर्ग में शेर खां की मनार स्थित है।
20. भरतपुर दुर्ग(भरतपुर)
1. इस दुर्ग का निर्माण सन् 1733 ई. में राजा सूरजमल ने करवाया था।

2. मिट्टी से निर्मित यह दुर्ग अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है।

3. किले के चारों ओर सुजान गंगा नहर बनाई गई जिसमे पानी लाकर भर दिया जाता था।

4. यह दुर्ग पारिख श्रेणी का दुर्ग है।

5. मोती महल, जवाहर बुर्ज व फतेह बुर्ज (अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक है।)

6. सन् 1805 ई. में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन असफल रहा।

7. इस दुर्ग में लगा अष्टधातू का दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ई. में ऐतिहासिक लाल किले से उतार लाए थे।

 21. चुरू का किला (चुरू)
1. धान्व श्रेणी के इस दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने करवाया।

2. महाराजा शिवसिंह के समय बारूद खत्म होने पर यहां से चांदी के गोले दागे गए।

 22. जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)
1. यह दुर्ग धान्व श्रेणी का दुर्ग हैं।

2. लाल पत्थरों से बने इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के प्रतापी शासक रायसिंह ने करवाया।

3. इस दुर्ग की निर्माण शैली में मुगल शैली का समन्वय है।

4. इस दुर्ग को अधगढ़ किला कहते हैं।

5. इस दुर्ग में जैइता मुनि द्वारा रचित रायसिंह , प्रशस्ति स्थित है।

6. सूरजपोल की एक विशेष बात यह है कि इसके दोनों तरफ 1567 ई. के चित्तौड़ के साके में वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरों जयमल मेडतियां और उनके बहनोई आमेर के रावत पता सिसोदिया की गजारूढ मूर्तियां स्थापित है।

दर्शनिय स्थल

1. हेरम्भ गणपति मंदिर

2. अनूपसिंह महल

3. सरदार निवास महल

 23. नागौर दुर्ग(नागौर)
1. नागौर दुर्ग के उपनाम नागदुर्ग, नागाणा व अहिच्छत्रपुर है।

2. इस दुर्ग का निर्माण चैहान वंश के शासक सोमेश्वर ने किया।

3. अमर सिंह राठौड़ की वीर गाथाएं इस दुर्ग से जुडी है।

4. नागौर दुर्ग को एक्सीलेंस अवार्ड मिला है।

24. अचलगढ़ दुर्ग(सिरोही)
1. परमार वंश के शासकों द्वारा 900 ई. के आसपास निर्मित किया गया।

2. इस दुर्ग को आबु का किला भी कहते हैं

दर्शनीय स्थल

1. अचलेश्वर महादेव मंदिर- शिवजी के पैर का अंगूठा प्रतीक के रूप में विद्यमान है।

2. भंवराथल - गुजरात का महमूद बेगडा जब अचलेश्वर के नदी व अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर लौट रहा था तब मक्खियों न आक्रमणकारियों पर हमला कर दिया। इस घटना की स्मृति में वह स्थान आज भी भंवराथल नाम से प्रसिद्ध है।

3. मंदाकिनी कुण्ड - आबू पर्वतांचल में स्थित अनेक देव मंदिरों के कारण आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा जाता है।

 25. शेरगढ़ दुर्ग(धौलपुर)
1. इस दुर्ग का निर्माण कुशाण वंश के शासन काल में करवाया था।

2. शेरशाह सूरी ने इस दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।

3. यह किला "दक्खिन का द्वार गढ" नाम से प्रसिद्ध है।

4. महाराजा कीरतसिंह द्वारा निर्मित "हुनहुंकार तोप" इसी दुर्ग में स्थित है।

 26. शेरगढ़ दुर्ग(बांरा)
1. यह दुर्ग परवन नदी के किनारे स्थित है।

2. हाडौती क्षेत्र का यह दुर्ग कोशवर्धन दुर्ग के नाम से भी प्रसिद्ध है।

 27. मंडरायल दुर्ग(सवाई माधोपुर)
1. इस दुर्ग को " ग्वालियर दुर्ग की कुंजी" कहा जाता है।

2. मंडरायल दुर्ग मर्दान शाह की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है।

 28. चैमू का किला (जयपुर)
1. इस किले का निर्माण ठाकुर कर्णसिंह ने करवाया।

2. उपनाम- चैमूहांगढ़, धाराधारगढ़ तथा रधुनाथगढ।
29. कांकणबाडी का किला (अलवर)
इस किले में औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह को कैद करके रखा था।
30. अन्य दुर्ग
1. कोटडा का किला - बाडमेर

2. खण्डार दुर्ग-सवाई माधोपुर-शारदा तोप इस दुर्ग में स्थित है।

3. माधोराजपुरा का किला - जयपुर

4. कंकोड/कनकपुरा का किला - टोंक

5. शाहबाद दुर्ग - बांरा -नवलवान तोप इस दुर्ग में स्थित है।

6. बनेडा दुर्ग - भीलवाडा

7. बाला दुर्ग - अलवर

8. बसंतगढ़ किला - सिरोही

9. तिमनगढ़ किला - करौली

 
 

 
 

 

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